धूम्रपान - तम्बाकू पर निबंध
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार तम्बाकू जनित रोगों के कारण दुनियाभर में 40 लाख लोग प्रतिवर्ष अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं| अर्थात 11 हजार व्यक्ति प्रतिदिन काल का ग्रास बनाते हैं| जिनमें से 20 प्रतिशत भारतीय होते हैं, जबकि हमारी आबाद केवल दुनिया की 16 प्रतिशत ही है| भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में 2200 लोग प्रतिदिन तम्बाकू के कारण मौत का शिकार होते हैं|
वैज्ञानिकों का कहना है कि तम्बाकू में 800 के लगभग यौगिक पाए जाते हैं, जिनमें से 33 प्रकार के यौगिक अत्यंत जहरीले हैं| इनमें निकोटिन, फिराडीन बेसेस, एक्रोलिन, कोलीडीन, प्रूसिक एसिड, अमोनिया, पाईरीन, फुरफुरल, राजोलीन, कर्कोलिक एसिड, पोलिनियम, रेडियम, कार्बन मोनोऑक्साइड, संखिया आदि शामिल हैं|
एक किलो तम्बाकू में 800 से 1000 ग्रेन के लगभग निकोटिन पाया जाता है| यह कितना जहरीला होता है, इसका अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि मात्र डेढ़ ग्रेन शुद्ध निकोटिन से ही व्यक्ति की मौत को सकती है| एक सिगरेट में आमतौर पर एक ग्रेन तम्बाकू होता है जिसमें ढाई से चार मिलीग्राम निकोटिन पाई जाती है|
तम्बाकू के प्रयोग से अस्थियाँ व अस्थि रज्जू कमजोर हो जाते हैं, फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तथा खांसी व टी.बी. हो जाती हैं| मुंह और फेफड़ों का कैंसर हो जाता है, स्मरण शक्ति का ह्रास, अनिंद्रा तथा बेचैनी जैसी समस्या भी हो जाती है| इसके अलावा तम्बाकू से 'टोबैको एमाब्लियोपिया' नामक रोग भी हो सकता है, जिसमें आँखों की रौशनी जा सकती है| विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पुरुषों में होने वाले 50 प्रतिशत और महिलाओं में होने वाले 25 प्रतिशत कैंसर गुटखा के पाउच के रूप में प्रचलित तम्बाकू के सेवन से होते हैं|
तम्बाकू का सेवन हर रूप में नुकसानदायक है| एक गलत धारणा है कि फ़िल्टर युक्त सिगरेट और हुक्का पीने से स्वस्थ्य पर कुप्रभाव नहीं होता| सच यह है कि फ़िल्टर केवल दो-चार काश लेने तक कुछ तत्वों को रोक पता है, मगर बाद में वे भी शरीर में पहुँचने लगते हैं| इसी प्रकार हुक्के का पानी भी सभी ज़हरीले तत्वों को नहीं रोक सकता| हालांकि इसमें कुछ मात्र में ज़हरीले तत्व घुल जाते हैं|
धूम्रपान न करने वाले लोगों पर उस धुआं का ज्यादा कुप्रभाव होता है जो धूम्रपान करने वाले लोगों द्वारा छोड़ी जाती है| इसलिए सरकार ने सार्वजानिक स्थानों और सार्वजानिक परिवहन सेवाओं में धूम्रपान पर रोक लगाकर इसे दंडनीय अपराध बना दिया है| अब तम्बाकू और गुटखे का प्रचार भी नहीं किया जा सकता| लोगों को तम्बाकू के दुष्प्रभावों से अवगत करवाने और जागरूकता फैलाने के लिए प्रति वर्ष 31 मई को तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है|
खेद का विषय है कि सरकारी तंत्र की निष्क्रियता, इच्छा शक्ति के आभाव और भ्रष्टाचार के कारण उक्त प्रतिबन्ध कारगर साबित नहीं हो रहा|
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि एक लोकतंत्रिक गणराज्य की सरकार राजस्व कमाने के लिए अपने ही लोगों को जहर पीने, खाने के लिए छूट देती है और इसका व्यापार करने के अनुमति प्रदान करती है| इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि बीडी उद्योग में लगे लाखों लोग बेरोजगार हो जायेंगे| लेकिन यह केवल बहाना है यदि सरकार की इच्छा शक्ति हो तो इस व्यवसाय में लगे लोगों के लिए किसी वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करके जहर के व्यापार को रोक सकती है| यूँ भी जितना राजस्व तम्बाकू उद्योग से आता है उससे अधिक जान-माल का नुकसान तो इससे उत्पन्न होने वाले रोगों की रोकथान और स्वास्थ्य सेवाओं पर हो जाता होगा|
तम्बाकू का सेवन हर रूप में नुकसानदायक है| एक गलत धारणा है कि फ़िल्टर युक्त सिगरेट और हुक्का पीने से स्वस्थ्य पर कुप्रभाव नहीं होता| सच यह है कि फ़िल्टर केवल दो-चार काश लेने तक कुछ तत्वों को रोक पता है, मगर बाद में वे भी शरीर में पहुँचने लगते हैं| इसी प्रकार हुक्के का पानी भी सभी ज़हरीले तत्वों को नहीं रोक सकता| हालांकि इसमें कुछ मात्र में ज़हरीले तत्व घुल जाते हैं|
धूम्रपान न करने वाले लोगों पर उस धुआं का ज्यादा कुप्रभाव होता है जो धूम्रपान करने वाले लोगों द्वारा छोड़ी जाती है| इसलिए सरकार ने सार्वजानिक स्थानों और सार्वजानिक परिवहन सेवाओं में धूम्रपान पर रोक लगाकर इसे दंडनीय अपराध बना दिया है| अब तम्बाकू और गुटखे का प्रचार भी नहीं किया जा सकता| लोगों को तम्बाकू के दुष्प्रभावों से अवगत करवाने और जागरूकता फैलाने के लिए प्रति वर्ष 31 मई को तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है|
खेद का विषय है कि सरकारी तंत्र की निष्क्रियता, इच्छा शक्ति के आभाव और भ्रष्टाचार के कारण उक्त प्रतिबन्ध कारगर साबित नहीं हो रहा|
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि एक लोकतंत्रिक गणराज्य की सरकार राजस्व कमाने के लिए अपने ही लोगों को जहर पीने, खाने के लिए छूट देती है और इसका व्यापार करने के अनुमति प्रदान करती है| इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि बीडी उद्योग में लगे लाखों लोग बेरोजगार हो जायेंगे| लेकिन यह केवल बहाना है यदि सरकार की इच्छा शक्ति हो तो इस व्यवसाय में लगे लोगों के लिए किसी वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करके जहर के व्यापार को रोक सकती है| यूँ भी जितना राजस्व तम्बाकू उद्योग से आता है उससे अधिक जान-माल का नुकसान तो इससे उत्पन्न होने वाले रोगों की रोकथान और स्वास्थ्य सेवाओं पर हो जाता होगा|
सरकार ईमानदारी से प्रयास करे यह तो जरुरी है, लेकिन अकेले सरकार के करने से कुछ नहीं होगा लोगों को भी अपना सहयोग इसकी रोकथाम में देना होगा तभी इस जहर से समाज और राष्ट्र को मुक्ति मिलेगी|