पर्यावरण संरक्षण में विद्यार्थियों की भूमिका : निबंध
पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक और जटिल समस्या है। कोई देश या सरकार अकेले अपने दम पर इस समस्या का समाधान नहीं कर सकती। इससे निपटने के लिए प्रत्येक नागरिक को अपना उत्तरदायित्व निभाना होगा। विद्यार्थी भी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान दे सकते हैं।
विद्यार्थियों को कागज का प्रयोग दोनों तरफ से और मितव्ययिता से करना चाहिए। क्योंकि लकड़ी की सर्वाधिक खपत कागज और लुगदी उद्योग में ही होती है, जिसे पूरा करने के लिए पेड़ों को काटना पड़ता है और पर्यावरण का नुकसान होता है। विद्यार्थियों को अपनी पुरानी किताबें किसी बुक-बैंक या जरूरतमंद अन्य विद्यार्थी को दे देनी चाहिए। इसी प्रकार नोट बुक्स में खाली पृष्ठ नहीं छोडऩे चाहिए और भरी हुई नोट बुक्स को फाडक़र फेंकने की बजाय रद्दी वाले को दे देनी चाहिए, जिससे कागज को रि-साईकिल किया जा सके और पेड़ों की रक्षा हो सके।
प्रकृति ने जितना जल हमें दिया है उसका केवल एक प्रतिशत ही हम पृथ्वी वासी उपयोग कर सकते हैं। वह भी धीरे-धीरे प्रदूषित होता जा रहा है। स्थिति यह है कि आज भी दुनिया में डेढ़ अरब लोग ऐसे हैं जिन्हें स्वच्छ पेयजल नहीं मिल पाता। इसलिए विद्यार्थी जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। हाथ-मुँह धोते और ब्रश करते समय नल को खुला नहीं छोडऩा चाहिए, ये कार्य लोटे या मग में पानी लेकर किए जा सकते हैं। नहाते समय शॉवर की बजाय बाल्टी का प्रयोग करना चाहिए, इससे जल की बचत होगी। विद्यार्थी जल संरक्षण के लिए अपने घर-परिवार और आस-पड़ोस में लोगों को जागरूक करने का काम भी कर सकते हैं।
पॉलीथीन भी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती है। इसलिए विद्यार्थियों को इसके प्रयोग से बचना चाहिए। जब भी सामान लेने जाएँ थैला साथ लेकर जाएँ। यूज एंड थ्रो वाली चीजों का प्रयोग करने से बचें। अगर प्लास्टिक या पॉलीथीन की पैकिंग में कोई सामान लाते भी हैं तो थैलियों को इधर-उधर न फेंके। क्योंकि ये थैलियाँ उडक़र नालियों और सिवरेज में पहुँचकर उन्हें अवरूद्ध कर देती हैं और गंदगी सडक़ों पर फैल जाती है। इसी प्रकार ये जलस्त्रोतों तक पहुँच कर जल को भी प्रदूषित करती हैं। इसलिए प्लास्टिक कचरा सुरक्षित और निर्धारित स्थान पर ही डालें ताकि उसे रि-साईकिल किया जा सके।
विद्यार्थी बिजली की बचत करके भी पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। क्योंकि बिजली के उत्पादन में कोयला, गैस या जल का प्रयोग होता है और बिजली का अपव्यय इन ऊर्जा स्त्रोतों को प्रभावित करने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण का कारण भी बनता है। कोयला जलने से जहरीला धुँआ तो निकलता ही है फ्लाई ऐश भी पैदा होती है जो पर्यावरण के लिए घातक है। इसलिए विद्यार्थियों को ध्यान रखना चाहिए कि जब आवश्यकता न हो बिजली के उपकरण बंद कर दें। लाईट और पंखा केवल उसी कमरे का चालू रखें जहाँ बैठकर पढ़ रहे हों। यदि संभव हो तो सौर ऊर्जा के उपकरणों का अधिक से अधिक उपयोग करें।
विद्यार्थी निजी साधनों की बजाय सार्वजनिक यातायात के साधनों का उपयोग करके भी तेल और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। कम दूरी पर जाने के लिए साईकिल का प्रयोग करें या पैदल चलें इससे सेहत भी ठीक रहती है और पर्यावरण को भी हानि नहीं पहुँचती।
त्योहारों और उत्सवों पर आतिशबाजी करके प्रदूषण नहीं फैलाना चाहिए और नाही बिजली-पानी की बर्बादी करनी चाहिए। बल्कि पौधारोपण करके इनको यादगार बनाना चाहिए। जन्म दिवस पर तो हर वर्ष एक पौधा अवश्य लगाना चाहिए।
वायु प्रदूषण के नियंत्रण में भी विद्यार्थी अपना सहयोग दे सकते हैं। जब भी टी.वी. या सी.डी. प्लेयर आदि चलाएँ तो आवाज इतनी ही रखें की आपको सुन जाए। तेज आवाज में म्यूजिक नहीं बजाना चाहिए और अपनी बाईक आदि में भी साधारण हॉर्न का केवल जरूरत होने पर ही प्रयोग करना चाहिए।
उपरोक्त छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर हम अपने पर्यावरण और भविष्य दोनों को सुरक्षित कर सकते हैं।
विद्यार्थियों को कागज का प्रयोग दोनों तरफ से और मितव्ययिता से करना चाहिए। क्योंकि लकड़ी की सर्वाधिक खपत कागज और लुगदी उद्योग में ही होती है, जिसे पूरा करने के लिए पेड़ों को काटना पड़ता है और पर्यावरण का नुकसान होता है। विद्यार्थियों को अपनी पुरानी किताबें किसी बुक-बैंक या जरूरतमंद अन्य विद्यार्थी को दे देनी चाहिए। इसी प्रकार नोट बुक्स में खाली पृष्ठ नहीं छोडऩे चाहिए और भरी हुई नोट बुक्स को फाडक़र फेंकने की बजाय रद्दी वाले को दे देनी चाहिए, जिससे कागज को रि-साईकिल किया जा सके और पेड़ों की रक्षा हो सके।
प्रकृति ने जितना जल हमें दिया है उसका केवल एक प्रतिशत ही हम पृथ्वी वासी उपयोग कर सकते हैं। वह भी धीरे-धीरे प्रदूषित होता जा रहा है। स्थिति यह है कि आज भी दुनिया में डेढ़ अरब लोग ऐसे हैं जिन्हें स्वच्छ पेयजल नहीं मिल पाता। इसलिए विद्यार्थी जल संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। हाथ-मुँह धोते और ब्रश करते समय नल को खुला नहीं छोडऩा चाहिए, ये कार्य लोटे या मग में पानी लेकर किए जा सकते हैं। नहाते समय शॉवर की बजाय बाल्टी का प्रयोग करना चाहिए, इससे जल की बचत होगी। विद्यार्थी जल संरक्षण के लिए अपने घर-परिवार और आस-पड़ोस में लोगों को जागरूक करने का काम भी कर सकते हैं।
पॉलीथीन भी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती है। इसलिए विद्यार्थियों को इसके प्रयोग से बचना चाहिए। जब भी सामान लेने जाएँ थैला साथ लेकर जाएँ। यूज एंड थ्रो वाली चीजों का प्रयोग करने से बचें। अगर प्लास्टिक या पॉलीथीन की पैकिंग में कोई सामान लाते भी हैं तो थैलियों को इधर-उधर न फेंके। क्योंकि ये थैलियाँ उडक़र नालियों और सिवरेज में पहुँचकर उन्हें अवरूद्ध कर देती हैं और गंदगी सडक़ों पर फैल जाती है। इसी प्रकार ये जलस्त्रोतों तक पहुँच कर जल को भी प्रदूषित करती हैं। इसलिए प्लास्टिक कचरा सुरक्षित और निर्धारित स्थान पर ही डालें ताकि उसे रि-साईकिल किया जा सके।
विद्यार्थी बिजली की बचत करके भी पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। क्योंकि बिजली के उत्पादन में कोयला, गैस या जल का प्रयोग होता है और बिजली का अपव्यय इन ऊर्जा स्त्रोतों को प्रभावित करने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण का कारण भी बनता है। कोयला जलने से जहरीला धुँआ तो निकलता ही है फ्लाई ऐश भी पैदा होती है जो पर्यावरण के लिए घातक है। इसलिए विद्यार्थियों को ध्यान रखना चाहिए कि जब आवश्यकता न हो बिजली के उपकरण बंद कर दें। लाईट और पंखा केवल उसी कमरे का चालू रखें जहाँ बैठकर पढ़ रहे हों। यदि संभव हो तो सौर ऊर्जा के उपकरणों का अधिक से अधिक उपयोग करें।
विद्यार्थी निजी साधनों की बजाय सार्वजनिक यातायात के साधनों का उपयोग करके भी तेल और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। कम दूरी पर जाने के लिए साईकिल का प्रयोग करें या पैदल चलें इससे सेहत भी ठीक रहती है और पर्यावरण को भी हानि नहीं पहुँचती।
त्योहारों और उत्सवों पर आतिशबाजी करके प्रदूषण नहीं फैलाना चाहिए और नाही बिजली-पानी की बर्बादी करनी चाहिए। बल्कि पौधारोपण करके इनको यादगार बनाना चाहिए। जन्म दिवस पर तो हर वर्ष एक पौधा अवश्य लगाना चाहिए।
वायु प्रदूषण के नियंत्रण में भी विद्यार्थी अपना सहयोग दे सकते हैं। जब भी टी.वी. या सी.डी. प्लेयर आदि चलाएँ तो आवाज इतनी ही रखें की आपको सुन जाए। तेज आवाज में म्यूजिक नहीं बजाना चाहिए और अपनी बाईक आदि में भी साधारण हॉर्न का केवल जरूरत होने पर ही प्रयोग करना चाहिए।
उपरोक्त छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर हम अपने पर्यावरण और भविष्य दोनों को सुरक्षित कर सकते हैं।